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बसंत चौहान/मंगेश यादव
सिटी हेराल्ड, विशेष खबर, इटारसी।
इटारसी रेलवे जंक्शन से संचालित दो ट्रेनें रोजाना सैकडों यात्रियों को कंफयूज करती है कि वह अपने निर्धारित स्थान पर जाने के लिए किस ट्रेन में बैठें। इससे रोजाना यात्रियों में ट्रेन में बैठने के लिए भगदड मच जाती है। सिटी हेराल्ड ने रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर इस गडबडी को जाना, यात्रियों से चर्चा की।
आइयें देखते हैं, यह विशेष खबर।
इटारसी। हम इस वक्त इटारसी के प्लेटफार्म नम्बर 05 पर खडे हैं, यहां उपर दिख रही फोटो प्लेटफार्म नम्बर 05 पर खडी प्रयागराज छिवकी ट्रेन का है, यह प्रयागराज यानी इलाहाबाद जाएगी। लेकिन इस पर नेम प्लेट पर विंध्याचल एक्सप्रेस लिखा है और भोपाल-इटारसी-प्रयागराज छिवकी लिखा है। साथ ही नम्बर 11271, 11272, 11273 और 11274 लिखा है।
लेकिन यह ट्रेन विंध्याचल एक्सप्रेस नहीं है। यह स्टेशन से 17.15 मिनिट यानी शाम 5.15 बजे रवाना होती है। लेकिन प्लेटफार्म पर रोजाना लगभग 3.30 बजे आकर खडी हो जाती है। भोपाल जाने वाले यात्री भी कई बार इसमें बैठ जाते हैं।
इटारसी। उपर दिख रही फोटो प्लेटफार्म नम्बर 07 पर खडी विंध्याचल एक्सप्रेस का है। यह कटनी, बीना होकर भोपाल तक जाती है। इसके भी नेम प्लेट पर विंध्याचल एक्सप्रेस लिखा है और भोपाल-इटारसी-प्रयागराज छिवकी लिखा है। साथ ही नम्बर 11271, 11272, 11273 और 11274 लिखा है। यह ट्रेन 16.20 मिनिट यानी शाम 4.20 बजे रवाना होती है। लेकिन प्लेटफार्म पर रोजाना लगभग 3.45 बजे आकर खडी हो जाती है। प्रयागराज छिवकी एक्सप्रेस के बाद।
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अब आप समझ रहे हैं हम क्या समझाना चाह रहे हैं…
दरअसल, स्टेशन के दो प्लेटफार्म पर एक समय में दो ट्रेन जोकि एक ही दिशा में जाती हैं, एक ही नम्बर और नाम के साथ खडी होती हैं, लेकिन एक ट्रेन शाम 16.20 बजे रवाना होती है और दूसरी ट्रेन 55 मिनिट बाद 17.15 बजे रवाना होती है। इससे यात्रियों में गफलत होती है कि वह किस ट्रेन में बैठें। कई दफा एनाउंसमेंट अच्छा होता है तो उससे समझ आ जाता है लेकिन कई बार यह ट्रेनों की संख्या स्टेशन पर अधिक होने से सुनाई नहीं देता। इससे यात्री दूसरी ट्रेन में बैठ जाते हैं और जब दूसरी को पहले चलता हुआ देखते हैं तो अपना सामान लेकर उसमें बैठने के लिए दौड पडते हैं, रोजाना यात्रियों के दौड लगाने वाले दृश्य नजर आते हैं। यह काफी खतरनाक होता है।
बार दफा तो ऐसा होता है कि भोपाल जाने वाले यात्री भी इन ट्रेनों में भोपाल- इटारसी पढकर बैठ जाते हैं और पिफर आउटर पर जब खुद को जबलपुर जाते हुए पाते हैं तो चलती ट्रेन से कूदकर वापस आते हैं या जंजीर खींचकर ट्रेन रोककर वापस आते हैं। यह भी खतरनाक होता है।
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अब यात्रियों के मुददे की बात-
रेलवे यह कहकर पलडा झाड लेती हैं कि दोनों ही ट्रेनों का रैक एक ही है, इसलिए यह गफलत होती है, लेकिन हम एनाउंसमेंट करते हैं यात्रियों को यह सुनना चाहिए। यानी यात्री पढकर नहीं सुनकर विश्वास करे रेलवे पर।
जबकि हमारा मानना यह है कि रेलवे को यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रेन से दोनों ट्रेनों के नेमप्लेट एक जैसा न करते हुए अलग करें और इटारसी- भोपाल के स्थान पर इटारसी व्हाया जबलपुर, कटनी, बीना व्हाया भोपाल जैसा लिखें, जिससे यात्री समझ सके।
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क्या कहते हैं यात्री —
पिपरिया जाने वाले यात्री यश का कहना है कि इस ट्रेन में इंजन लगते हुए देखा तो इसमें बैठ गए। हमनें दोनों ट्रेन को देखा, और जिस में इंजन लगता देखा उसे देखकर समझ गए, कि बीना यानी विंध्याचल एक्सप्रेस कौन सी है। वैसे कंफयूजन तो होता ही है।
हमनें प्रयागराज छिवकी ट्रेन में बैठे युवा आकाश कुशवाहा से पूछा कि कहां जा रहे हो तो वह बोला कि भोपाल जा रहा है, जब उससे हमनें कहा कि यह तो प्रयागराज इलाहाबाद जाएगी तो वह बोला इसमें तो भोपाल लिखा है, इसलिए मैं बैठ गया। उसे जब हमने समझाया तो वह हैरान रह गया और कहने लगा, आज बडी गलती हो जाती।
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