ब्रह्मांड में एक ही देव जिसने राक्षसों के वंश का नाश किया, वह महादेव हैं 

Date:

City Center

सिटी हेराल्‍ड। इटारसी 

पाप का अंत होता है और पुण्य अनंत है। राक्षसी शक्तिया कुछ समय तो प्रकृति और मनुष्य सहित देवताओं को परेशान तो कर सकती है लेकिन उनका अंत होता ही है।
देवों के देव महादेव इस हेतु ही आए कि वे देवताओं और जगत की राक्षसों से रक्षा कर सके। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर लक्कड़गंज में चतुर्थ दिवस वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा और अभिषेक यजमान दिलीप पुष्पा सराठे ,अभिषेक सराठे एवं पराशराम जानकी सराठे ,अर्जुन सराठे द्वारा किया गया।
मुख्य आचार्य पंण् विनोद दुबे ने कहा कि महाराष्ट्र के परली और बिहार की चिताभूमि दो जगह वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा और अभिषेक होता है।
चिताभूमि में सावन मास में लाखों कावड़िये गंगा का जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते है और अपनी मनोकामना पूरी करने पर दोबारा आते है। वहीं परली वैद्यनाथ जो कि महाराष्ट्र के वीड जिले में है यहां भी सावन मास में निरंतर उत्सव होते है।
आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा परली के वैद्यनाथ को मान्यता दी गई है। वीड जिले में आंबेजोगाई से केवल 26 किमी0 दूर पर यह स्थान है। ब्रम्हा वेणु और सरस्वती नदियों के आस पास वसा परली अति प्राचीन गांव है ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती केवल परली में ही साथ साथ निवास करते है। इसीलिए इस स्थान को अनोखी काशी भी कहते है। इस गांव का काशी जैसा महत्व होने के कारण यहां के लोगों को काशी तीर्थ यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती । परली गांव के पहाड़ो में नदियों की घाटियों में उपयुक्त वन औषधियां मिलती है परली के ज्योर्तिलिंग को इसी कारण वैद्यनाथ नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु ने देवगणों को अमृत विजय प्राप्त करा दिया था अतः इस तीर्थ स्थान को वैजयंती नाम भी प्राप्त हुआ। देव दानवों द्वारा किये गये अमृत मंथन से चौदह रत्न निकले थे उनमें धन्वंतरी और अमृत रत्न भी थे अमृत को प्राप्त करने दानव दौड़े तब श्री विष्णु ने अमृत के संग धन्वंतरी को भी शंकर भगवान की लिंग मूर्ति में छिपा दिया था दानवों ने जैसे लिंग मूर्ति को छूना छाया वैसे लिंग मूर्ति से ज्वालायें निकली और दानव भाग खड़े हुए परंतु शिव भक्तों ने जब लिंग मूर्ति को छुआ तब उसमें से अमृत धारायें निकली।
परली मंे जाति और लिंग भेद नही होगा। आचार्य पंण् विनोद दुबे ने कहा कि वैद्यनाथ लिंग मूर्ति में धन्वंतरी और अमृत होने के कारण इसे अमृतेष्वर तथा धन्वंतरी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि शिव भक्त रावण की बर्बादी का श्राप भी यही से शुरू हुआ। यही पर मार्केण्डेय ऋषि को शिवजी की कृपा से जीवनदान मिला। उनकी अल्पायु को यमराज की पकड़ से शिवजी ने मुक्त किया था। उनकी स्मृति में यहां मार्केण्डेय सरोवर बना हुआ है।
वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग के पूजन और अभिषेक में पंण् सत्येन्द्र पांडेय पंण् पीयूष पांडेय निरंतर सहयोग कर रहे है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Partycasino Entrar

Good Examples regarding distinctive on-line slot machines consist...

Partypoker Overview 2025 Is Partypoker Legit And Risk-free To End Up Being In A Position To Play On?

This gorgeous casino celebration invitation functions a foiled design...

Uncover Jokabet Reward Codes: Increase Your Own Wagering Advantages

Interpersonal press programs also act as superb sources...